मीत्रो धर्म के एक आर्टिकल में हमने श्रीमद् भागवत महापुराण का महत्व समजा है. पर आज के आर्टिकल में हम जानेंगे गोविंद दामोदर स्तोत्र का महत्व.
दस्तो हम सब जानते है की भागवत कथा का पाठ करने से जीवन में एक अलग प्रकार का परिवर्तन आता है और जीवन प्रगती की दीशा में आगे बढता है. परंतु आज के समय में मेट्रो की तरह दोड रही जींदगी में हमे इतना समय नही मीलता की हम कुछ धर्म कार्य कर सके.
आज बात है भागवत कथा सुनने की. तो दोस्तो 7 दीन की भागवत कथा सुनने सुनने से बहुत पुण्य फल प्राप्त होता है. परंतु आज के समय में कीसी व्यक्ति के पास इतना समय नही है की वो भागवत कथा सुने. परंतु दोस्तो श्रीमद् भागवत महापुराण में कहा गया है की जो भी व्यक्ति हर रोज श्री गोविंद दामोदर स्तोत्र का पाठ करेगा उसे भागवत कथा सुनने जीतना पुण्य फल प्राप्त होगा.
गोविंद दामोदर स्तोत्र का बहुत महत्व है. यह एक कल्याणकारी स्तोत्र है. इस स्तोत्र का यदी आप हररोज पाठ करते है तो भागवत कथा सुनने जीतना पुण्य फल प्राप्त होता है एसा श्रीमद् भागवत महापुराण में कहा गया है. तो हमने अपने यह आर्टिकल में पुरा गोविंद दामोदर स्त्रोत्र लीख कर आप तक पहुंचाया है. तो नित्य इसका पठन कीजीए और जीवन को मंगलमय बनाइये.
करारविन्देन पदार्विन्दं, मुखार्विन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटेशयानं, बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि॥
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे, हे नाथ नारायण वासुदेव।
जिव्हे पिबस्वा मृतमेव देव, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
विक्रेतुकामाखिल गोपकन्या, मुरारि पादार्पित चित्तवृतिः।
दध्यादिकं मोहावशादवोचद्, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
गृहे-गृहे गोपवधू कदम्बा:, सर्वे मिलित्वा समवाप्ययोगम्।
पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
सुखं शयाना निलये निजेऽपि, नामानि विष्णोः प्रवदन्तिमर्त्याः।
ते निश्चितं तन्मयतमां व्रजन्ति, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
जिह्वे दैवं भज सुन्दराणि, नामानि कृष्णस्य मनोहराणि।
समस्त भक्तार्ति विनाशनानि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
सुखावसाने इदमेव सारं, दुःखावसाने इदमेव ज्ञेयम्।
देहावसाने इदमेव जाप्यं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
जिह्वे रसज्ञे मधुरप्रिया त्वं, सत्यं हितं त्वां परमं वदामि।
आवर्णये त्वं मधुराक्षराणि, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
त्वामेव याचे मन देहि जिह्वे, समागते दण्डधरे कृतान्ते।
वक्तव्यमेवं मधुरम सुभक्तया, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
श्री कृष्ण राधावर गोकुलेश, गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णो।
जिह्वे पिबस्वा मृतमेवदेवं, गोविन्द दामोदर माधवेति॥
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