फ़ॉलोअर

जानीये गणेशजी की पूजा का महत्व


नमस्कार दर्शक मीत्रो.. टेक्सटाईल मीरर डोट इन में आपका स्वागत करते हे. आईये हमारे ईस नये सफरकी शुरूआत गणेशजी के स्मरण से करते हे. मीत्रो कहा जाता हे की जब भी कोई शुभ कार्य की हम शुरूआत करते हे तो गणेशजी के नाम से या फीर उन की पूजा से करनी चाहीये. आईये आज हम भी गणेशजी के नाम का स्मरण करते हे ओर उनसे जुडी कई महत्वपूर्ण बातो को भी जानते हे.



गणेश भगवान शिव और माता पार्वती  के पुत्र हैं। उनका वाहन डिंक नामक मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिषमें इनको केतु का देवता माना जाता है और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। इसलिए इन्हें आदिपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपासना करने वाला सम्प्रदाय गाणपतेय कहलाते है।

प्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उनकी अत्यंत रूपवती और पतिव्रता पत्नी का नाम मनोमयी था। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और मनोमयी गृह-कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहाँ आया और उसने अनुपम लावण्यवती मनोमयी को देखा तो व्याकुल हो गया।

कौंच ने ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और काँपती हुई ऋषि पत्नी उससे दया की भीख माँगने लगी। उसी समय सौभरि ऋषि आ गए। उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा 'तूने चोर की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक होकर धरती के नीचे और चोरी करके अपना पेट भरेगा।

काँपते हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की-'दयालु मुनि, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें। ऋषि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहाँ गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे (हर युग में गणेशजी ने अलग-अलग अवतार लिए) तब तू उनका डिंक नामक वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे। सारे विश्व तब तुझें श्रीडिंकजी कहकर वंदन करेंगे।

गणेश को जन्म न देते हुए माता पार्वती ने उनके शरीर की रचना की। उस समय उनका मुख सामान्य था। माता पार्वती के स्नानागार में गणेश की रचना के बाद माता ने उनको घर की पहरेदारी करने का आदेश दिया। माता ने कहा कि जब तक वह स्नान कर रही हैं तब तक के लिये गणेश किसी को भी घर में प्रवेश न करने दे। तभी द्वार पर भगवान  शिव आए और बोले "पुत्र यह मेरा घर है मुझे प्रवेश करने दो।

पर गणेशजीने भगवान शिवको अंदर नही जाने दीया. भगवान शिवने बहुत समजाया पर गणेशजी नही माने " गणेश के रोकने पर प्रभु ने गणेशजी का सर धड़ से अलग कर दिया। उतनेमें स्नान कार्य संपन्न कर माता पार्वतीजी वहां पहुंचे तो उन्होने गणेश को भूमि में निर्जीव पड़ा देख माता पार्वती व्याकुल हो उठीं। तब शिव को उनकी त्रुटि का बोध हुआ और उन्होंने गणेश के धड़ पर गज का सर लगा दिया। उनको प्रथम पूज्य का वरदान मिला इसीलिए सर्वप्रथम गणेश की पूजा होती है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ